चूहे को भी चटकर जाऊँ।
मेरे रंगों के ये भेद (प्रकार)
काली, कबरी और सफेद।
---- बिल्ली
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(२) हल्की-हल्की उसकी काया,
चीं-चीं करके शोर मचाया।
फुदक-फुदक मन ललचाए,
मुन्नी उसको पकड़ न पाए।
----- चिडिया
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(३)खेल है नसीब का,
घर हूँ गरीब का।
एक-एक दिन गिनती हूँ
घास-फूस से बनती हूँ।
---- झोपडी
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(४)गाँव-गाँव की प्यास बुझाती,
कल-कल का संगीत सुनाती।
बहती रहना मेरा काम,
बतलाओ तो मेरा नाम
----- नदी
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(५) पर्वत एक निराला हूँ,
भारत का रखवाला हूँ।
काया मेरी लंबी-मोटी,
एवरेस्ट है मेरी चोटी।
----- हिमालय
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संकलक :- शंकर चौरे सर
पिंपळनेर (साक्री) जि.धुळे
9422736775 / 7721941496
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