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(१) रात्र थोडी, सोंगे फार.
अर्थ-- कामाच्या मानाने वेळ अगदीच कमी असणे.
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(२) पळसाला पाने तीनच.
अर्थ -- कुठेही गेले तरी परिस्थिती तीच असते.
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(३) कुंपणच शेत खाते.
अर्थ -- रक्षकानेच चोऱ्या करणे.
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(४) जेवीन तर तुपाशी, नाहीतर तर उपाशी.
अर्थ-- मिळाले तर चांगले पाहिजे नाहीतर मुळीच
नको.
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(५) अडली गाय फटके खाय.
अर्थ-- अडचणीत सापडलेल्या माणसाला
अपमानास्पद शब्द ऐकून घ्यावे लागतात.
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(६) अति तेथे माती.
अर्थ-- कोणत्याही गोष्टीचा अतिरेक वाईट असतो.
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(७) करावे तसे भरावे.
अर्थ-- आपण जशी कृती करू तसे त्याचे फळ
मिळते.
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(८) एक ना धड, भाराभर चिंध्या.
अर्थ-- एकाच वेळी अनेक कामे स्वीकारल्यामुळे
शेवटी कोणतेही काम पूर्ण न होणे.
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(९) काकडीची चोरी फाशीची शिक्षा.
अर्थ-- लहानशा अपराधासाठी फार मोठी
शिक्षा होणे.
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(१०) कामापुरता मामा.
अर्थ-- गरजेपुरते गोड बोलणारा; मतलबी माणूस.
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(११) टाकीचे घाव सोसल्याशिवाय देवपण येत
नाही.
अर्थ-- कष्ट घेतल्याशिवाय मोठेपण मिळत नाही.
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(१२) तापल्या तव्यावर पोळी भाजून घेणे.
अर्थ-- आलेल्या संधीचा फायदा घेणे.
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(१३) भटाला दिली ओसरी, भट हळूहळू
पाय पसरी.
अर्थ -- एखाद्याला थोडीशी सवलत देताच तो
त्याचा जास्त फायदा घेऊ लागतो.
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(१४) मुंगी होऊन साखर खावी.
अर्थ-- नम्रपणाने चांगल्या चांगल्या गोष्टी
साध्य होतात.
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(१५) हाताच्या कंकणाला आरसा कशाला ?
अर्थ -- प्रत्यक्ष दिसणाऱ्या गोष्टीला पुराव्याची
गरज नसते.
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(१६) आपलेच दात, आपले ओठ .
अर्थ-- आपल्याच माणसाने चूक केल्यामुळे
अडचणीची स्थिती निर्माण होणे.
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(१७) आंधळं दळत, कुत्रं पीठ खातं.
अर्थ-- एकाने काम करावे आणि दुसर्याने
त्याचा फायदा घ्यावा.
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(१८) गोगलगाय अन् पोटात पाय.
अर्थ -- बाहेरून गरीब दिसणारी; पण मनात
कपट असणारी व्यक्ती.
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संकलक :- शंकर सिताराम चौरे ( प्रा. शिक्षक )
पिंपळनेर - साक्री (धुळे)
¤ ९४२२७३६७७५ ¤
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