(१) सनई :-
सनई हे वायूवाद्य आहे. मंगल प्रसंगी हे वाद्य
वाजवले जाते. सनईचे सूर गोड असतात.
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(२) डमरू :-
डमरू हे एक तालवाद्य आहे. ते डुम डुम
असा आवाज करते. माकडाच्या खेळात
मदारी या वाद्याचा उपयोग करतो.
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(३) तुतारी :-
तुतारी हे एक रणवाद्य आहे. याचा आवाज
कर्कश असतो. पूर्वी युद्धाच्या प्रारंभी हे वाद्य
वाजवले जायचे. युद्धात राजाचा विजय
झाल्यावर सनई - चौघडा यांच्यासोबत हे
विजयी वाद्य वाजवण्यात यायचे.
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(४) तबला - डग्गा :-
तबला - डग्गा हे कातडी वाद्य आहे. शास्त्रीय
गायनात पेटीच्या साथीला ठेका देण्यासाठी
वाजवले जाते.
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(५) ढोलकी :-
ढोलकी तमाशाच्या फडात लावणी व पोवाडा
या गायनप्रकारात ढोलकीची साथ आवश्यक
असते. ढोलकीच्या तालावर नृत्य केले जाते.
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(६) डफ किंवा हलगी :-
डफ/हलगी हे एक कातडी वाद्य आहे. पोवाडा
गाताना शाहीर हे स्वतः हाताने वाजवतात.
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(७) खंजिरी / डफली :-
खंजिरी/डफली हे कातडी वाद्य शाहीर गाताना
वाजवतात. याच्या कडेला बारीक झांजा असतात.
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(८) ताशा :-
ताशा हे कोकणातील कातडी वाद्य दोन
काठ्यांनी वाजवतात. पूर्वीच्या काळी लग्नाच्या
वरातीत हे वाजवत असत.
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(९) वीणा :-
वीणा हे एक तंतूवाद्य आहे. गायनाच्या साथीला
सूर कायम गुंजत राहण्यासाठी शास्त्रीय गायक
वापरतात.
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(१०) तुणतुणे :-
तुणतुणे हे लावणी, पोवाडा गाताना झिलकरी
हे तंतूवाद्य साथीला घेतात.
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(११) बासरी :-
बासरी हे बांबूचे बनलेले वायूवाद्य आहे.
हे ओठांच्या फुंकरीने वाजवले जाते. याचा
स्वर मधुर असते.
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(१२) झांज :-
झांज हे एक धातू वाद्य आहे. लेझीम विशेषतः
खेळताना हे वाजवले जाते.
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संकलक :- शंकर सिताराम चौरे ( प्रा. शि.)
पिंपळनेर - साक्री ( धुळे )
¤ ९४२२७३६७७५ ¤
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